क्षत्रिय कुल https://www.kshatriyakul.com/activity__trashed/ Social media site for Kshatriya Community Mon, 19 Dec 2022 13:29:58 +0000 hi-IN hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.4.3 https://www.kshatriyakul.com/wp-content/uploads/2022/11/cropped-Screenshot-2022-11-14-at-11.51.54-PM-32x32.png क्षत्रिय कुल https://www.kshatriyakul.com/activity__trashed/ 32 32 212454773 शिवाजी महाराज की जाति क्षत्रीय ही है https://www.kshatriyakul.com/%e0%a4%b6%e0%a4%bf%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%9c%e0%a5%80-%e0%a4%ae%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%9c-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%a4%e0%a4%bf-%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7/ https://www.kshatriyakul.com/%e0%a4%b6%e0%a4%bf%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%9c%e0%a5%80-%e0%a4%ae%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%9c-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%a4%e0%a4%bf-%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7/#respond Mon, 19 Dec 2022 13:29:55 +0000 https://www.kshatriyakul.com/?p=280 https://www.bbc.com/hindi/india-37645762 BBC NEWS ARTICL 1857 की लड़ाई और सावरकर के इतिहास पर लिखनेवाले प्रोफेसर शेषराव मोरे के मुताबिक-“पहले वर्ण को व्यवसाय के तौर पर बांटा गया, पर बाद में धर्मशास्त्र में दो ही वर्ण माने गए. एक थे ब्राहमण और अन्य तीनों को एक श्रेणी में शूद्र माना गया.इसके पीछे कुछ पुराणों में बताया गया […]

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BBC NEWS ARTICL

1857 की लड़ाई और सावरकर के इतिहास पर लिखनेवाले प्रोफेसर शेषराव मोरे के मुताबिक-“पहले वर्ण को व्यवसाय के तौर पर बांटा गया, पर बाद में धर्मशास्त्र में दो ही वर्ण माने गए. एक थे ब्राहमण और अन्य तीनों को एक श्रेणी में शूद्र माना गया.इसके पीछे कुछ पुराणों में बताया गया एक मिथक था. इसके मुताबिक विष्णु के अवतार माने जाने वाले परशुराम और क्षत्रियों के बीच लड़ाई हो गई और उसमें सब क्षत्रिय मारे गए.पीछे सिर्फ विधवाएं और बच्चे रह गए, जिन्हें प्रजा यानी शूद्र माना गया.इस ग़लत मान्यता के चलते और जाति प्रथा को क़ायम रखने के लिए ब्राहमणों ने शिवाजी का राज्यभिषेक करने से मना कर दिया.शिवाजी महाराज की जाति क्षत्रीय ही है क्योंकि उनका घराना राजा का घराना था और उनकी पीढ़ियां लड़ाई के कौशल में माहिर थीं.वो राजस्थान के राजपूत घराने से महाराष्ट्र आए थे और क्षत्रिय और शूद्र की ये बहस बिल्कुल बेमानी है.वर्ण व्यवस्था से पहले शूद्र भी राजा थे और क्षत्रिय वेद लिखते थे. ये सारे अंतर तो ब्राहमणों के ही बनाए हुए हैं और इतिहास भी उन्होंने ही लिखा है.”

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संघटन की शक्ति https://www.kshatriyakul.com/%e0%a4%b8%e0%a4%82%e0%a4%98%e0%a4%9f%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%b6%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%a4%e0%a4%bf/ https://www.kshatriyakul.com/%e0%a4%b8%e0%a4%82%e0%a4%98%e0%a4%9f%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%b6%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%a4%e0%a4%bf/#respond Mon, 19 Dec 2022 13:18:17 +0000 https://www.kshatriyakul.com/?p=276 *”छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज संगठन” की आवश्यकता क्यों है?*आधुनिक भौतिकवाद के अतिरेक में एवं वर्तमान राजनीतिक लोकतांत्रिक परिवेश में अनेक समाज बंधु प्रायः कहते रहते हैं कि जब वर्ण व्यवस्था प्रासंगिक नही रही, जाति व्यवस्था भी धीरे धीरे समाप्त होती दिख रही है तब *”छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज संगठन” की आवश्यकता क्यों है?*। ऐसे बंधुओं […]

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*”छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज संगठन” की आवश्यकता क्यों है?*आधुनिक भौतिकवाद के अतिरेक में एवं वर्तमान राजनीतिक लोकतांत्रिक परिवेश में अनेक समाज बंधु प्रायः कहते रहते हैं कि जब वर्ण व्यवस्था प्रासंगिक नही रही, जाति व्यवस्था भी धीरे धीरे समाप्त होती दिख रही है तब *”छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज संगठन” की आवश्यकता क्यों है?*। ऐसे बंधुओं द्वारा यह सिद्ध करने की कोशिश भी होती है कि समाज में जितनी बुराइयां हैं, उन सबके लिए जाति-व्यवस्था ही दोषी है। परन्तु आक्षेपों के बावजूद भी जाति व्यवस्था अभी तक चल रही है और किसी न किसी रूप में आगे भी चलती रहेगी, यही इस बात का प्रमाण है कि यह व्यवस्था इतनी बुरी नहीं है, जितनी समझी जाती है। मेरे विचार से तो स्वार्थी तत्वों द्वारा दी गई सामाजिक बुराइयों / कुरीतियों ने ही जाति व्यवस्था को दूषित कर रखा है। वृहद स्तर पर देखें तो व्यवहारिक जातीय संगठन का अभाव और कमजोर होते जाना मनुष्य को व्यक्तिगत और सार्वजनिक रूप से कमजोर करता है। वास्तव में जातीय संगठन की कमजोरी तो सामाजिक बुराइयों / कुरीतियों का अंतर्जातीयकरण करती दिख रही है। ऐसी परिस्थिति में *छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज* जैसी अल्पसंख्यक जातियां सामाजिक कुरीतियों का दुष्परिणाम तो भोगेंगी ही साथ साथ संगठन के अभाव में शासन प्रशासन द्वारा मिलने वाली सुविधाओं से अनभिज्ञ भी रहेंगी और सुविधाओं का लाभ भी नही उठा पायेंगी। सारी सुविधायें अन्य जातियों के वे संपन्न लोग ही ले पायेंगे जिन्होंने पिछड़े न होते हुये भी कागजी आधार पर खुद को पिछड़ा प्रमाणित करवा लिया है। यहां तक कि दिन रात अपनी जाति / जातीयता को कोसने वाले महानुभाव भी जाति प्रमाणपत्र हाथ में लेकर शासन द्वारा दी जाने वाली जाति आधारित सुविधाओं को लेने में आगे रहते हैं। स्वार्थों, भौतिकता से भरी हुई तथाकथित आधुनिकता के दायरे से थोड़ा हटकर सोचा जाये कि *”छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज संगठन”* क्यों आवश्यक है और इसका क्या लाभ है। एक संगठित छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज निम्नानुसार उपयोगी हो सकता है।*(1) सामाजिक अपनत्व:-* सभी जानते और मानते हैं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और इस नाते उसे आपसी व्यवहार और रिश्तों के माध्यम से अपनत्व की आवश्यकता होती है जहां वह अपनों के बीच में अपने दुख सुख बांटता है। इस कड़ी में वह अपनी परेशानियों के समाधान के लिये सलाह और मार्गदर्शन अपने जातीय संगठन से प्राप्त करने में सहजता अनुभव करता है। अब तो छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज में अनेक उदाहरण सामने आने लगे हैं जब संगठन विपत्ति के समय भुक्तभोगी को सहयोग के लिये अपील करता है और प्रायः सहयोग मिलता भी है।इस तरह से एक संगठित छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज एक सशक्त ट्रेड यूनियन के रूप में कार्य कर सकता है। यह समाज बंधुओं के तीज त्योहारों में उल्लास भरता है, खुशियों में सम्मिलित होता है, आपदा के समय मनोबल बढ़ाता है। सीधे सीधे कहा जाये तो सामाजिक संगठन की उपयोगिता समाज बंधुओं के जन्म से लेकर अंतिम संस्कार तक है। *(2) सामाजिक परम्परायें :-* जाति के अंदर परम्परायें सभी के लिये समान होती हैं कुछ परम्परायें सही होती हैं तो कुछ परम्पराओं / रूढ़ियों में समयानुसार परिवर्तन की आवश्यकता पड़ती है। अब चूंकि जाति बंधु अपनी परम्पराओं को जानते समझते हैं तो सही परम्पराओं का पालन और रूढ़ियों का सुधार सामूहिक रूप से कर सकते हैं। हम अपनी परम्पराओं को न तो दूसरी जातियों पर थोप सकते हैं और न ही उनकी परम्पराओं में सुधार कर सकते हैं। यहां तो संगठित छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज की अनिवार्यता ही है क्योंकि बिना परम्पराओं के कोई भी समुदाय होता ही नही है। *(3) जीवन साथी का चुनाव:-* कहने को तो अब अंतरजातीय विवाह बहुत हो रहे हैं इसका अर्थ तो यही निकलता है कि अन्य जातियों से जीवन साथी चुना जा सकता है परंतु अन्य परिवेश / जातियों से चुना गया जीवन साथी परिवार रिश्तों में सहजता से कभी नही स्वीकारा जाता। पूरे जीवन रिश्तों में उपेक्षा का भय बना रहता है। इससे बड़ी बात यह है कि जब युवक युवतियों के अभिभावक रिश्ते देखते हैं तो उनका दायरा जाति के अंदर ही हो सकता है वे इस दायरे से निकलकर अन्य जातियों से रिश्ते मांगने जा नही पाते। जहां युवक युवती स्वयं अन्य जातियों से जीवन साथी चुनते हैं तो विवाद की स्थिति में कोई समझाने वाला ही नही होता। अर्थात यदि जीवन साथी सजातीय है तो वैवाहिक रिश्तों को बनाने से लेकर बचाने के लिये संगठित छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज बड़ी भूमिका निभा सकता है। विजातीय संबंधों में तो किसी का कोई जोर रहता ही नही है।*(4) आपसी सहयोग की भावना:–* हम अपनी जाति-व्यवस्था के दायरे में सदस्यों में सद्भावना एवं सहयोग की भावना का विकास कर सकते हैं। मिलकर एक आर्थिक व्यवस्था का निर्माण करके जरूरतमंदों की सहायता कर सकते हैं, जिससे राज्य-सहायता की आवश्यकता कम पड़ेगी वैसे भी संबंधित विभागों की जटिल प्रक्रिया के कारण बहुतेरे लोग शासन से सहायता ले नही पाते। जाति या समाज बंधुओं के बीच जानकारियों का आदान प्रदान सहज भाव से हो सकता है और शासन द्वारा सहयोग दिलाने में जानकार लोगों का मार्गदर्शन बहुत उपयोगी होता है।*(5) जातिगत व्यवसायों का संरक्षण:–* प्रत्येक जाति का एक विशिष्ट व्यवसाय होता है, जिससे न केवल नयी पीढ़ी का भविष्य निश्चित हो जाता है, अपितु उसे उस व्यवसाय को सीखने का भी उचित अवसर प्राप्त होता है। चूंकि जाति के साथ जातिगत व्यवसाय का तादात्म्य होता है, व्यवसाय / कारीगरी में गर्व भी अनुभव होता है। प्राचीन भारत में कारीगरों की कई पीढ़ियां होती थीं, जो अपने कौशल में सिद्धहस्त रहती थी और जातिगत व्यवसाय को अपने हाथों से निकलने नही देती थीं। *मुझे लगता है यहां हमने एक बड़ी चीज खो दी है। छीपा रंगारी का कलात्मक व्यवसाय हम अपने बीच से समाप्त कर चुके हैं। क्या यह उचित नही होता कि हम संगठित रहकर अपनी छीपा रंगारी कला को नई तकनीकों के साथ अपने बीच जीवित रखते। रोजगार का एक साधन हमारे बीच से निकल कर बड़े उद्योगपति वर्ग के पास चला गया।* और यह केवल हमारे साथ नही हुआ बल्कि कारीगरी, क्राफ्ट, कला के आधार पर बनी अनेक जातियां अपने जमे जमाये व्यवसाय छोड़कर रोजगार की आस में भटकने को विवश हैं। *(6) सांस्कारिक शुद्धता:-* अन्य जातियों के समान ही छीपा रंगारी क्षत्रिय संगठन भी अंतरजातीय विवाहों का समर्थन नही करता। जाति के अंदर विवाह होने से परिवारों में दो जातियों के बीच होने वाले संस्कारों और परम्पराओं के बीच टकराव की आशंका नही रहती। यद्यपि इसके बाद भी अंतरजातीय विवाह होते ही हैं कभी युवक-युवतियों के आपसी लगाव के कारण होते हैं तो कभी माता-पिता, युवक-युवतियों की किसी विवशता के कारण होते हैं। मेरे विचार से अंतरजातीय विवाहों का विरोध करने की बजाय हमें जातीय विवाहों के लाभों से नयी पीढ़ी को अवगत कराना चाहिये। सामाजिक कुरीतियों को समाप्त कर समाज को युवाओं के लिये अधिक आकर्षक बनाने की आवश्यकता है ताकि कोई भी निराश होकर छीपा रंगारी जाति से विमुख न हो। गरीब अमीर सभी की उपयुक्त रिश्तों की आकांक्षाये समाज के अंदर उपलब्ध आर्थिक साधनों में दहेज/मांग मुक्त वैवाहिक कार्यक्रमों में पूरी हों यह सुनिश्चित करना होगा। यद्यपि किसी गरीब का अंतरजातीय विवाह करना उसे जाति से दूर कर देता है संपन्न वर्ग को समाज/जाति में देर सबेर स्वीकार कर ही लिया जाता है। इसलिये अन्तर्जातीय विवाह करने वालों पर प्रतिबंध लगाने की बजाय अपने जातीय संगठन को ही सामाजिक सुधारों के साथ व्यवस्थित किया जाये। इससे हम अपनी जातीय शुद्धता के साथ प्रगतिशील छीपा रंगारी समाज की आवश्यकता को साकार कर सकेंगे।*(7) पारिवारिक / कौटुम्बिक न्याय में सहजता:-* सभी जानते हैं कि विवाद, कलह, अपराध, पारिवारिक संपत्ति के बटवारे की स्थिति में सरकारी न्याय व्यवस्था से न्याय पाना कितना खर्चीला होता है, कितना लंबा समय लगता है, इस समय व्यक्ति कितना तनावग्रस्त रहता है कई बार तो न्याय मिलने के बाद भी उस न्याय का औचित्य नही रह जाता। गरीब आदमी तो कोर्ट कचहरी जाने की हैसियत भी नही रखता। आजकल तो छोटे छोटे पारिवारिक विवाद भी अदालतों में पहुंच जाते हैं और अंततः संबंधित परिवारों की टूट के कारण बनते हैं। सुनवाई सुलभ न होने, सही राह बताने वाले मंच के न होने से, परिवारों में सामंजस्य न बन पाने के कारण कई दुर्भाग्यपूर्ण हादसे हो जाते हैं। निराश होकर लोग अपनी जान से भी खेल जाते हैं बाद में पता चलता है कि इतना निराश होने का कारण कोई बड़ा नही था। ऐसी स्थिति से उबारने के लिये जातीय संगठनों / पंचायतों की बड़ी भूमिका रही है, जातीय संगठनों की न्याय व्यवस्था बड़ी सहजता से संबंधितों को संतुष्ट कर सकती है। क्योंकि वहां सभी पक्षों की सुनने वाले अपने ही होते हैं, कम समय में संदेह/समस्याओं का हल मिलता है। समाधान देकर सामाजिक निर्णयों का पालन देखने वाले हितैषी समाज बंधु रिश्तेदार होते हैं। छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज संगठन ऐसी कल्याणकारी और सहज सुलभ न्याय व्यवस्था को पुनः जाग्रत कर सकता है और परिवार, कुटुम्ब, जाति के बीच में विवाद की स्थिति में सबको ससम्मान संतुष्ट करते हुये कम समय में, बिना अदालत वकीलों के चक्कर लगाये न्याय दे सकता है। अपनों के बीच में अपनी समस्यायें रखने का अवसर परिवारों को टूटने से एवं अनपेक्षित घटनाओं से बचा सकता है।*(8) अनाथ / असहाय बच्चों का पालन पोषण:-* दुर्भाग्य से यदि किसी बच्चे के माता पिता न रहें तो ऐसे बच्चों के पालन पोषण के लिये बच्चों के अनुकूल अपनत्व से भरे वातावरण में पालन पोषण की व्यवस्था जाति के अंदर अधिक अच्छी हो सकती है ऐसे बच्चे पारिवारिक रिश्तों जैसा प्यार पा सकते हैं यदि संगठित समाज बंधु अनाथ बच्चों के पालक परिवार को यथोचित मार्गदर्शन और सहयोग दे। यहां भी संगठित छीपा रंगारी समाज अपने जाति बंधुओं की नई पौध को मुरझाने से बचा सकता है।उपरोक्त के अतिरिक्त एक संगठित छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज जातिबंधुओं के लिये और भी लाभदायक सिद्ध होगा, इसलिये हमें जातीय आधार पर संगठित होना ही चाहिये। इससे हमारी राष्ट्रीय और वैश्विक पहचान बनेगी। एक शिक्षित, सुसंस्कृत, सभ्य जाति के रूप में जातिबंधु संगठित होकर अपने जाति बंधुओं की उन्नति के साथ अपने धर्म और राष्ट्र के लिये भी समर्पित रहेंगे। निवेदकअशोक कुमार राठौरजबलपुर (मध्यप्रदेश)

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समाधान https://www.kshatriyakul.com/%e0%a4%b8%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%a7%e0%a4%be%e0%a4%a8/ https://www.kshatriyakul.com/%e0%a4%b8%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%a7%e0%a4%be%e0%a4%a8/#respond Sun, 18 Dec 2022 10:40:37 +0000 https://www.kshatriyakul.com/?p=272 सभी माताओं बहनों ओर मान्यवारो से निवेदन है की मुझे ओर समाज के अन्य युवाओं को समाज के इतिहास की जानकारी दी जाए । हम युवा स्पष्टीकरण चाहते है की हम कोन है , हमारा मूल क्या है ….. बोहोत से युवा गैर समझ में जी रहे है । कृपया आप सभी मान्यवर युवा प्रांतीय […]

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सभी माताओं बहनों ओर मान्यवारो से निवेदन है की मुझे ओर समाज के अन्य युवाओं को समाज के इतिहास की जानकारी दी जाए । हम युवा स्पष्टीकरण चाहते है की हम कोन है , हमारा मूल क्या है ….. बोहोत से युवा गैर समझ में जी रहे है ।

कृपया आप सभी मान्यवर युवा प्रांतीय ग्रुप ज्वाइन करे ओर मै कुछ प्रश्न लिख रहा हु उसका उत्तर देते हुए समाज के युवाओं को समाज के बारे में जागृत करे।

१. हम कोन है ?

२. हम हमारे समाज के नाम में क्षत्रिय क्यों लिखते है ?

३. हमारी जात रंगारी / छीपा है या क्षत्रिय है ?

४. या बस हम क्षत्रिय थे ओर काम की वजह से बिछड़ गए?

५. क्षत्रिय जात भी है कुल भी है , ऐसा क्यों ?

६. हमारे समाज / कुनबे का राजपूतों में क्या स्थान है?

७. हमारे समाज का जन्म कैसे ओर कब हुआ ?

८. क्या 31 + उम्र वालो ने , विधवा ने , विधुर ने , डिवोसी ने ओर दिव्यांग ने सम समाज जो क्षत्रिय कुल में आता है ऐसे में शादी करना उचित है या अनुचित है ?

९. शिवाजी महाराज स्वयं को राजपूत घोषित कर के राज्याभिषेक किए उनका अभी का परिवार भी खुद को सिसोदिया वंश का मानते है ओर यह कई किताबो में भी लिखा हुआ है। ( शिवाजी महाराज राजपूत थे उन्होंने महाराष्ट्र में आकर खुद का मराठा साम्राज्य स्थापित किए ।) इसपर आप सभी मान्यवारो से स्पष्टीकरण चाहिए है।

१०. हम महाराणा प्रताप जी को हमारे पूजनीय मानते है तो ऐसे में हमे उनके वंशज श्री छत्रपति शिवाजी महाराज की भी फोटो हर प्रोग्राम में साथ में रखना चाहिए।

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रक्षाबंधन के दूसरे दिन मनाया जाता है भुजरिया पर्व, जानिये इसके बारे में सब कुछ https://www.kshatriyakul.com/%e0%a4%b0%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%82%e0%a4%a7%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%a6%e0%a5%82%e0%a4%b8%e0%a4%b0%e0%a5%87-%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%a8-%e0%a4%ae%e0%a4%a8/ https://www.kshatriyakul.com/%e0%a4%b0%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%82%e0%a4%a7%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%a6%e0%a5%82%e0%a4%b8%e0%a4%b0%e0%a5%87-%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%a8-%e0%a4%ae%e0%a4%a8/#respond Sun, 18 Dec 2022 10:02:14 +0000 https://www.kshatriyakul.com/?p=267 श्रावण मास की पूर्णिमा रक्षाबंधन के अगले दिन भुजरिया पर्व मनाया जाता है। यह पर्व मुख्‍य रूप से बुंदेलखंड का लोकपर्व है। अच्छी बारिश, फसल एवं सुख-समृद्धि की कामना के लिए रक्षाबंधन के दूसरे दिन भुजरिया पर्व मनाया जाता है। इसे कजलियों का पर्व भी कहते हैं। कजलियां पर्व प्रकृति प्रेम और खुशहाली से जुड़ा […]

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श्रावण मास की पूर्णिमा रक्षाबंधन के अगले दिन भुजरिया पर्व मनाया जाता है। यह पर्व मुख्‍य रूप से बुंदेलखंड का लोकपर्व है। अच्छी बारिश, फसल एवं सुख-समृद्धि की कामना के लिए रक्षाबंधन के दूसरे दिन भुजरिया पर्व मनाया जाता है। इसे कजलियों का पर्व भी कहते हैं। कजलियां पर्व प्रकृति प्रेम और खुशहाली से जुड़ा है। आइये जानते हैं इस पर्व के बारे में सब कुछ।

भुजरिया पर्व में लोग एक दूसरे से मिलकर उन्हें गेहूं की भुजरिया देते हैं और इस पर्व की शुभकामनाएं भी देते हैं ये त्योहार अच्छी वर्षा होन, फसल होने और जीवन में सुख समृद्धि की कामना के साथ यह त्योहार मनाया जाता है आपको बता दें कि भुजरिया का त्योहार बुंदेलखंड में सबसे अधिक धूमधाम के साथ मनाया जाता है तो आज हम आपको अपने इस लेख दवारा भुजरिया पर्व से जुड़ी जानकारी प्रदान कर रहे हैं तो आइए जानते हैं।

क्‍या है भुजरिया

जल स्त्रोतों में गेहूं के पौधों का विसर्जन किया जाता है। सावन के महीने की अष्टमी और नवमीं को छोटी – छोटी बांस की टोकरियों में मिट्टी की तह बिछाकर गेहूं या जौं के दाने बोए जाते हैं। इसके बाद इन्हें रोजाना पानी दिया जाता है। सावन के महीने में इन भुजरियों को झूला देने का रिवाज भी है। तकरीबन एक सप्ताह में ये अन्नाा उग आता है, जिन्हें भुजरियां कहा जाता है।

भुजरियों की पूजा का महत्‍व

इन भुजरियों की पूजा अर्चना की जाती है एवं कामना की जाती है, कि इस साल बारिश बेहतर हो जिससे अच्छी फसल मिल सकें। श्रावण मास की पूर्णिमा तक ये भुजरिया चार से छह इंच की हो जाती हैं। रक्षाबंधन के दूसरे दिन इन्हें एक-दूसरे को देकर शुभकामनाएं एवं आशीर्वाद देते हैं। बुजुर्गों के मुताबिक ये भुजरिया नई फसल का प्रतीक है। रक्षाबंधन के दूसरे दिन महिलाएं इन टोकरियों को सिर पर रखकर जल स्त्रोतों में विसर्जन के लिए ले जाती हैं।

यह है भुजरिया की कथा

इसकी कथा आल्हा की बहन चंदा से जुड़ी है। इसका प्रचलन राजा आल्हा ऊदल के समय से है। आल्हा की बहन चंदा श्रावण माह से ससुराल से मायके आई तो सारे नगरवासियों ने कजलियों से उनका स्वागत किया था। महोबा के सिंह सपूतों आल्हा-ऊदल-मलखान की वीरता आज भी उनके वीर रस से परिपूर्ण गाथाएं बुंदेलखंड की धरती पर बड़े चाव से सुनी व समझी जाती है। बताया जाता है कि महोबे के राजा के राजा परमाल, उनकी बिटिया राजकुमारी चन्द्रावलि का अपहरण करने के लिए दिल्ली के राजा पृथ्वीराज ने महोबे पै चढ़ाई कर दी थी। राजकुमारी उस समय तालाब में कजली सिराने अपनी सखी – सहेलियन के साथ गई थी। राजकुमारी को पृथ्वीराज हाथ न लगाने पाए इसके लिए राज्य के बीर-बांकुर (महोबा) के सिंह सपूतों आल्हा-ऊदल-मलखान की वीरतापूर्ण पराक्रम दिखलाया था। इन दो वीरों के साथ में चन्द्रावलि का ममेरा भाई अभई भी उरई से जा पहुंचे। कीरत सागर ताल के पास में होने वाली ये लड़ाई में अभई वीरगति को प्यारा हुआ, राजा परमाल को एक बेटा रंजीत शहीद हुआ। बाद में आल्हा, ऊदल, लाखन, ताल्हन, सैयद राजा परमाल का लड़का ब्रह्मा, जैसें वीर ने पृथ्वीराज की सेना को वहां से हरा के भगा दिया। महोबे की जीत के बाद से राजकुमारी चन्द्रवलि और सभी लोगों अपनी-अपनी कजिलयन को खोंटने लगी। इस घटना के बाद सें महोबे के साथ पूरे बुन्देलखण्ड में कजलियां का त्यौहार विजयोत्सव के रूप में मनाया जाने लगा है। कजलियों (भुजरियां) पर गाजे-बाजे और पारंपरिक गीत गाते हुए महिलाएं नर्मदा तट या सरोवरों में कजलियां खोंटने के लिए जाती हैं। हरियाली की खुशियां मनाने के साथ लोग एक – दूसरे से मिलेंगे और बड़े बुजुर्ग कजलियां देकर धन – धान्य से पूरित क हने का आशीर्वाद देंगे।

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नागपुर क्षत्रिय छिपा समाज – महिला समिति https://www.kshatriyakul.com/%e0%a4%a8%e0%a4%be%e0%a4%97%e0%a4%aa%e0%a5%81%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%af-%e0%a4%b8%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%9c-%e0%a4%ae%e0%a4%b9%e0%a4%bf/ https://www.kshatriyakul.com/%e0%a4%a8%e0%a4%be%e0%a4%97%e0%a4%aa%e0%a5%81%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%af-%e0%a4%b8%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%9c-%e0%a4%ae%e0%a4%b9%e0%a4%bf/#respond Mon, 05 Dec 2022 05:49:31 +0000 https://www.kshatriyakul.com/?p=249 सभी सामाजिक बन्धुओं को यथा-योग्य सप्रेम नमस्कार 🙏 दि. 4 दिसंबर 2022 को श्री संजय जी सुधाकर जी चुरहे शेष नगर, नागपूर मे मासिक सभा का आयोजन किया गया है इसमें नागपुर समिति के सभी पदाधिकारी, सलाहगार, सदस्य और सभी नागपुर निवासी सामाजिक बन्धुओं ने उपस्थित थेl नागपुर निवासी महिला समिति का गठन महाराष्ट्र प्रांतीय […]

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सभी सामाजिक बन्धुओं को यथा-योग्य सप्रेम नमस्कार 🙏

दि. 4 दिसंबर 2022 को श्री संजय जी सुधाकर जी चुरहे शेष नगर, नागपूर मे मासिक सभा का आयोजन किया गया है इसमें नागपुर समिति के सभी पदाधिकारी, सलाहगार, सदस्य और सभी नागपुर निवासी सामाजिक बन्धुओं ने उपस्थित थेl

नागपुर निवासी महिला समिति का गठन महाराष्ट्र प्रांतीय महिला उपाध्यक्ष प्रो. सौ. ऊषाताई राजेश जी कैलाबाग इनकी अध्यक्षता में दि. 4 दिसंबर 2022 किया गया है जो निम्नलिखित है

अध्यक्ष – सौ. नलिनी मनीष शेटे
उपाध्यक्ष – सौ. प्रीति दीपक चूरहे
सचिव – सौ. शारदा महेश चौहान
उप-सचिव – सौ. स्वाती आकाश चूरे
सह सचिव – सौ अनिता घनश्याम जी खेरडे
कोषाध्यक्ष – सौ. रश्मी प्रशांत जी बडघरे
उप कोषाध्यक्ष – सौ. निशा प्रमोद जी चूरहे
सह कोषाध्यक्ष – सौ. अपूर्वा गणेश जी सेठीया

सल्लाकार –
श्रीमती आशा ताई नारायण जी चुरहे
सौ. कल्पना बाई हरी किशन मुजारिया

सदस्या :-
सौ. सपना विरेन्द्र रक्षीये
सौ. सुनीता चुरहे
सौ. किरण शेटीये
सौ. नीता महेश चंद्रजी चुरहे
सौ. साधना शेटीये
सौ. सविता बडघरे
सौ. सारिका बडघरे

धन्यवाद

क्षत्रिय छिपा समाज, नागपुर

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क्षत्रिय कुलावतंस शिशोदिया वंश https://www.kshatriyakul.com/%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%af-%e0%a4%95%e0%a5%81%e0%a4%b2%e0%a4%be%e0%a4%b5%e0%a4%a4%e0%a4%82%e0%a4%b8/ https://www.kshatriyakul.com/%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%af-%e0%a4%95%e0%a5%81%e0%a4%b2%e0%a4%be%e0%a4%b5%e0%a4%a4%e0%a4%82%e0%a4%b8/#respond Wed, 23 Nov 2022 17:04:36 +0000 https://www.kshatriyakul.com/?p=207 छत्रपति शिवाजी महाराज प्रौढप्रताप पुरंदर क्षत्रिय कुलावतंस सिंहासनाधीश्वर महाराजाधिराज छत्रपति शिवाज़ीमहाराज़ !!!!राजाधिराज महाराज शिवराय राज श्री छत्रपतीकर्तव्यदक्ष सिंहासिनाधीश्वर छत्रपती शिवरायदुर्गपती गज अश्व पती ! सुवर्ण रत्न श्रीपती !अष्टावधान प्रेष्टीत ! अष्टप्रधान वेष्टित !राजनीती धुरंदर ! प्रौढप्रताप पुरंदर !क्षत्रिय कुलावतंस सिहासानाधीश्वर महाराजाधिराजछत्रपती शिवाजी महाराज कि जय! जन्म और वंश परिचय,प्रारम्भिक जीवन : भोंसले वंश के क्षत्रियत्व […]

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छत्रपति शिवाजी महाराज


प्रौढप्रताप पुरंदर क्षत्रिय कुलावतंस सिंहासनाधीश्वर महाराजाधिराज छत्रपति शिवाज़ीमहाराज़ !!!!
राजाधिराज महाराज शिवराय राज श्री छत्रपती
कर्तव्यदक्ष सिंहासिनाधीश्वर छत्रपती शिवराय
दुर्गपती गज अश्व पती ! सुवर्ण रत्न श्रीपती !
अष्टावधान प्रेष्टीत ! अष्टप्रधान वेष्टित !
राजनीती धुरंदर ! प्रौढप्रताप पुरंदर !
क्षत्रिय कुलावतंस सिहासानाधीश्वर महाराजाधिराज
छत्रपती शिवाजी महाराज कि जय!

जन्म और वंश परिचय,प्रारम्भिक जीवन :

  • क्षत्रपति शिवाजी राजे भोंसले का जन्म 19 फ़रवरी 1630 को पश्चिमी महाराष्ट्र के शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। उनके पिता शाहजी भोंसले और माता जीजाबाई थी जो जाधव(यदुवंशी) वंश के क्षत्रियोँ की पुत्री थीं जिन्होंने महाराष्ट्र में कई सदियोँ तक राज किया था। भोंसले वंश मराठा देश के क्षत्रियो का प्रमुख वंश है जिसका निकास मेवाड़ के गहलोत/सिसोदिया वंश से हुआ है। इस तरह भारत के दो महान सुपुत्र और क्षत्रियों के गौरव महाराणा प्रताप और शिवाजी राजे एक ही वंश से संबंध रखते हैँ।
  • शिवाजी राजे के पिता शाहजी राजे दक्षिण भारत के एक शक्तिशाली सामंत थे और उनकी माता जीजाबाई एक आदर्श क्षत्राणी और असाधारण महिला थी। उनका बचपन अपनी माता के संरक्षण में ही बीता। शिवाजी महाराज बचपन से ही बहुत तेज दिमाग और प्रतिभाशाली थे। उनकी माता जिजाऊ ने एक आदर्श क्षत्राणी की तरह उनमे देशभक्ति और बलिदान की भावना कूट कूट कर भर दी थी। बचपन से ही शिवाजी राजे के ह्रदय में स्वतंत्रता की लौ प्रज्वलित हो गई थी और विदेशी शाशन की बेड़िया तोड़ने का उन्होंने संकल्प ले लिया था।
  • उन्होंने कम उम्र में ही विदेशियों से अपनी मातृभूमि को मुक्त कराने का अभियान छेड़ दिया और जीवन भर संघर्ष करते हुए अपनी शूरवीरता और बुद्धिमता के बल पर दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य के बाद पहला स्वतंत्र हिन्दू राज्य स्थापित कर लिया। उन्होंने मराठा देश के सभी क्षत्रियोँ को ही नहीँ बल्कि सभी हिन्दू जातियों के लोगो को संगठित कर के विशाल और अपराजेय सेना का निर्माण किया। हालांकि उन्हें बचपन में कोई ख़ास शिक्षा नही मिली लेकिन दादा कोंडदेव उनके राजनितिक गुरु थे और राजे शुक्राचार्य और कौटिल्य की नीतियों को आदर्श मानते थे। उनकी सफलता में उनकी बुद्धिमता और कूटनीति का बहुत बड़ा योगदान था। चाहे अफजल खान से भिड़ंत हो या आगरा के दरबार में नजरबन्द होने के बाद वहॉ से निकलना या फिर अनेको किलो को बिना रक्त बहाए जीतना या विशाल सेनाओ के विरुद्ध छापामार शैली में लड़कर जीतना,इस तरह के शिवाजी राजे की बुद्धिमता और कूटनीति के अनेको उदाहरण है। इतिहास में शिवाजी राजे जैसा बुद्धिमान और कूटनीतिज्ञ शाशक शायद ही कोई रहा होगा जिन्होंने बहुत कम संसाधनों के साथ अपने से कहीँ विशाल साम्राज्यो से संघर्ष करते हुए बुद्धि और कूटनीति के बल पर एक विशाल और ताकतवर साम्राज्य स्थापित किया।
  • शिवाजी राजे महान सेनानायक के साथ ही एक कुशल और प्रबुद्ध सम्राट के रूप में भी जाने जाते है। प्रशाशन की बागडोर वो सीधे अपने हाथो में ही रखते थे। राज्याभिषेक होने के बाद उन्होंने हिन्दू शास्त्रो के आधार पर एक सुदृढ़ प्रशासनिक और न्याय तंत्र विकसित किया। वो एक कट्टर हिन्दू थे लेकिन उन्होंने सहिष्णुता की नीती अपनाई। हिन्दू स्वराज स्थापित करने के बाद भी मुसलमानो को पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता दी।

भोंसले वंश के क्षत्रियत्व का प्रमाण :

  • शिवाजी राजे के राज्याभिषेक की प्रक्रिया जब शुरू हुई तो महाराष्ट्र के ब्राह्मणों ने दुर्भावनावष उनके क्षत्रिय होने पर सवाल उठाकर उनका राज्याभिषेक करने से मना कर दिया। उनके क्षत्रियत्व पर वो ही लोग आज तक भी दुष्पचार कर रहे है जबकि उनके बनाए हुए साम्राज्य का सबसे ज्यादा लाभ इन्हीं लोगो ने उठाया। जब महाराष्ट्र के ब्राह्मणों ने उनका राज्याभिषेक करने से मना कर दिया तो बनारस के एक ब्राह्मण गागभट्ट को बुलाया गया जिनके सामने भोंसले वंश के मेवाड़ के गहलोत/शिशोदिया वंश की शाखा होने के प्रमाण रखे गए। इनसे संतुष्ट होकर पंडित गागभट्ट ने शिवाजी का राज्याभिषेक किया।
  •  इन प्रमाणो के अनुसार महाराणा हम्मीर सिंह के छोटे पुत्र सज्जन सिंह अपने साथियों के साथ दक्षिण चले गए और वहॉ उनके वंशजो से मराठा क्षत्रियोँ के भोंसले और घोरपड़े वंश चले। इनकी वंशावली निम्न प्रकार से है-


1. रावल बप्पा ( काल भोज ) – 734 ई० मेवाड राज्य में गहलौत शासन के सूत्रधार।
2. रावल खुमान – 753 ई०
3. मत्तट – 773 – 793 ई०
4. भर्तभट्त – 793 – 813 ई०
5. रावल सिंह – 813 – 828 ई०
6. खुमाण सिंह – 828 – 853 ई०
7. महायक – 853 – 878 ई०
8. खुमाण तृतीय – 878 – 903 ई०
9. भर्तभट्ट द्वितीय – 903 – 951 ई०
10. अल्लट – 951 – 971 ई०
11. नरवाहन – 971 – 973 ई०
12. शालिवाहन – 973 – 977 ई०
13. शक्ति कुमार – 977 – 993 ई०
14. अम्बा प्रसाद – 993 – 1007 ई०
15. शुची वरमा – 1007- 1021 ई०
16. नर वर्मा – 1021 – 1035 ई०
17. कीर्ति वर्मा – 1035 – 1051 ई०
18. योगराज – 1051 – 1068 ई०
19. वैरठ – 1068 – 1088 ई०
20. हंस पाल – 1088 – 1103 ई०
21. वैरी सिंह – 1103 – 1107 ई०
22. विजय सिंह – 1107 – 1127 ई०
23. अरि सिंह – 1127 – 1138 ई०
24. चौड सिंह – 1138 – 1148 ई०
25. विक्रम सिंह – 1148 – 1158 ई०
26. रण सिंह ( कर्ण सिंह ) – 1158 – 1168 ई०
27. क्षेम सिंह – 1168 – 1172 ई०
28. सामंत सिंह – 1172 – 1179 ई०
29. कुमार सिंह – 1179 – 1191 ई०
30. मंथन सिंह – 1191 – 1211 ई०
31. पद्म सिंह – 1211 – 1213 ई०
32. जैत्र सिंह – 1213 – 1261 ई०
33. तेज सिंह -1261 – 1273 ई०
34. समर सिंह – 1273 – 1301 ई० (एक पुत्र कुम्भकरण नेपाल चले गए नेपाल के राज वंश के शासक कुम्भकरण के ही वंशज हैं)

35.रतन सिंह ( 1301-1303 ई० ) – इनके कार्यकाल में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौडगढ पर अधिकार कर लिया। प्रथम जौहर पदमिनी रानी ने सैकडों महिलाओं के साथ किया। गोरा – बादल का प्रतिरोध और युद्ध भी प्रसिद्ध रहा।

36. महाराणा हमीर सिंह ( 1326 – 1364 ई० ) – हमीर ने अपनी शौर्य, पराक्रम एवं कूटनीति से मेवाड राज्य को तुगलक से छीन कर उसकी खोई प्रतिष्ठा पुनः स्थापित की और अपना नाम अमर किया महाराणा की उपाधि धारं किया। इसी समय से ही मेवाड नरेश महाराणा उपाधि धारण करते आ रहे हैं। इनके वंसज सिसोदिया कहलाये इनके छोटे पुत्र सज्जन सिंह सत्तार दक्षिण (महाराष्ट्र) में चले गए

A – मेवाड़ सिसोदिया (क्षेत्र सिंह)
B – महाराष्ट सिसोदिया (सज्जन सिंह)


A (क्षेत्र सिंह से)
37.A महाराणा क्षेत्र सिंह,
38.A महाराणा लाखा सिंह
39.A महाराणा मोकल सिंह 1421/1433
40.A महाराणा कुम्भकर्ण सिंह 1433/1468
41.A महाराणा उदय सिंह I 1468/1473
42.A महाराणा रैमल सिंह 1473/1508,
43.A महाराणा संग्राम सिंह I 1508/1528
44.A महाराणा रतन सिंह 1528/1531,
45.A महाराणा विक्रमादित्य सिंह 1531/1536
46.A महाराणा उदय सिंह II, 1537/1572, –
47.A महाराणा प्रताप सिंह II, 1572/1597,


B (सज्जन सिंह से)
37.B सज्जन सिंह (सिम्हा1310)
38.B दिलीप सिंह –
39.B शिवाजी प्रथम
40.B भोसजी
41.B देवराजजी –
42.B उग्रसेन –
43.B माहुलजी –
44.B खेलोजी
45.B जानकोजी
46.B संभाजी
47.B बाबाजी
48.B मालोजी
49.B शहाजी
50.B छत्रपति शिवाजी

  • कर्नाटक में मूढोल रियासत के घोरपोडे परिवार के पास आज भी वो फ़ारसी फरमान सुरक्षित है जिनमे भोंसले और घोरपोड़े वंशो को मेवाड़ के सिसोदिया वंश से निकला हुआ बताया गया है। मूढोल के घोरपोडे पहले राणा उपाधी लगाते थे।

यहाँ तक की शिवाजी महाराज से भी पहले उनके पिता शाह जी खुद को सिसोदिया राजपूतो का वंशज बताते थे। शिवाजी राजे के राज्याभिषेक से भी बहुत पहले शाहजी राजे के दरबारी कवि जयराम ने उनको राजा दलीप का वंशज और धरती पर सब राजाओं में श्रेष्ठ हिंदुआ सूरज मेवाड़ के महाराणाओं के परिवार में पैदा होना बताया है। वो लिखते है-
महिच्या महेंद्रामध्ये मुख्य राणा।दलिपास त्याच्या कुळी जन्म जाणा।।
त्याच्या कुळी माल भूपाळ झाला।जळाने जये शंभू सम्पूर्ण केला।।

उस समय के कई यूरोपीय और अन्य रिकॉर्ड में शिवाजी राजे को राजपूत लिखा गया है जिससे ये पता चलता है कि उस समय उत्तर भारत के क्षत्रियो की तरह मराठा देश के क्षत्रियो को भी राजपूत कहा जाने लगा था।

ईस्ट इंडिया कंपनी के 28 नवंबर1659 के एक लेख के अनुसार- “Sevagy, a great Rashpoote issues forth from his fort Rayguhr to strike blows on the Emperor, Duccan, Golconda and the Portuguese.”

जयपुर आर्काइव में सुरक्षित उस समय के एक लेख में शिवाजी राजे के राजपूती स्वभाव और आचरण की तारीफ़ करी है। उसके अनुसार- “Shivaji is very clever; he speaks the right word, after which nobody need say anything on the subject. He is a good genuine Rajput….and says appropriate things marked by the spirit of a Rajput.”

कृष्णाजी अनंत सभासद जो शिवाजी राजे की सेवा में थे, उन्होंने सभासद बाखर नामक ग्रन्थ में आँखों देखा हाल लिखा है। उसमे लिखा है की राजा जय सिंह ने शिवाजी राजे को राजपूत माना और राजपूत होने के नाते धर्मांध औरंगजेब के सामने उनका सहयोग करने का वचन दिया। इसके अलावा इस ग्रन्थ में शिवाजी राजे द्वारा खुद को राजपूत कहने का वर्णन भी मिलता है। जब शाइस्ता खान ने विशाल सेना के साथ आक्रमण किया तो शिवाजी ने अपने सभी कारकूनो, सरनोबत और महत्वपूर्ण लोगो को रायगढ़ बुलाकर उनकी राय लेनी चाही। सभी लोगो ने मुग़लो से संधि करने की राय दी क्योंकि उनके अनुसार उनके पास मुग़लो की विशाल सेना का सामना करने की क्षमता नही है। शिवाजी राजे उनसे सहमत नही हुए और उन्होंने कहा की- ” If peace is decided on, there is no influential Rajput, (with the Khan) as would, (considering the fact that) we are Rajputs and he too is a Rajput, protect the Hindu religion and guard our interests. Saista Khan is a Mahomedan, a relation of the Badshah ; bribe and corruption cannot be practised on him. Nor will the Khan protect us. If I meet him in peace, he will bring about (our) destruction. It is injurious to us.”

इस तरह भोंसले वंश का सिसोदिया वंश से निकास और असली क्षत्रिय वंश होना प्रमाणित होता है।

प्रौढप्रताप पुरंदर क्षत्रिय कुलावतांश सिंहासनाधीश्वर महाराजाधिराज छत्रपति शिवाज़ीमहाराज़ !!!!
राजाधिराज महाराज शिवराय राज श्री छत्रपती
कर्तव्यदक्ष सिंहासिनाधीश्वर छत्रपती शिवराय
दुर्गपती गज अश्व पती ! सुवर्ण रत्न श्रीपती !
अष्टावधान प्रेष्टीत ! अष्टप्रधान वेष्टित !
राजनीती धुरंदर ! प्रौढप्रताप पुरंदर !
क्षत्रिय कुलावतंस सिहासानाधीश्वर महाराजाधिराज
छत्रपती शिवाजी महाराज कि जय!

सन्दर्भ-
1.चिन्तामण विनायक वैद्य की शिवाजी-दी फाउंडर ऑफ़ मराठा स्वराज पुस्तक के पृष्ठ क्रमांक ६ से १०
2.कोल्हापुर राजपरिवार का इतिहास। 3.मेवाड़ राजपरिवार का इतिहास।
4.कर्नल टॉड द्वारा लिखित इतिहास। 

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इन 10 कारणों से नहीं हो सकती एक ही गोत्र में शादी, जान लें कहीं आप तो नहीं करते ये गलती https://www.kshatriyakul.com/%e0%a4%87%e0%a4%a8-10-%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a3%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%a8%e0%a4%b9%e0%a5%80%e0%a4%82-%e0%a4%b9%e0%a5%8b-%e0%a4%b8%e0%a4%95%e0%a4%a4%e0%a5%80-%e0%a4%8f/ https://www.kshatriyakul.com/%e0%a4%87%e0%a4%a8-10-%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a3%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%a8%e0%a4%b9%e0%a5%80%e0%a4%82-%e0%a4%b9%e0%a5%8b-%e0%a4%b8%e0%a4%95%e0%a4%a4%e0%a5%80-%e0%a4%8f/#respond Sun, 20 Nov 2022 19:01:23 +0000 https://www.kshatriyakul.com/?p=197 1.हिंदुओं में गोत्र का विशेष महत्व है। वेदों के अनुसार मनुष्य जाति विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप और अगस्त्य जैस महान ऋषियों की वशंज हैं। 2.पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक ऋषि की अपनी प्रतिष्ठा है। ऐसे में अगर कोई व्यक्ति एक ही गोत्र में शादी करते हैं तो वह एक ही परिवार के […]

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1.हिंदुओं में गोत्र का विशेष महत्व है। वेदों के अनुसार मनुष्य जाति विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप और अगस्त्य जैस महान ऋषियों की वशंज हैं।

2.पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक ऋषि की अपनी प्रतिष्ठा है। ऐसे में अगर कोई व्यक्ति एक ही गोत्र में शादी करते हैं तो वह एक ही परिवार के माने जाते हैं।

3.शास्त्रों के अनुसार एक ही वंश में जन्मे लोगों का विवाह हिंदू धर्म में पाप माना जाता है। ऋषियों के अनुसार ये गौत्र परंपरा का उल्लंघन माना जाता है।

4.धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एक गोत्र में शादी करने से विवाह दोष लगता है। इससे पति-पत्नी के सबंधों में दरार पड़ने का खतरा रहता है।

5.कई विद्वानों के अनुसार एक ही गोत्र में शादी करने से होने वाली संतान को भी कष्ट झेलने पड़ते हैं। इससे संतान में कई अवगुण और रोग उत्पन्न हो सकते हैं।

6.गोत्र परंपरा का नाता रक्त संबंधों से होता है। ऐसे में एक ही कुल में शादी करने से न सिर्फ होने वाली संतान में शारीरिक दोष बल्कि चरित्र और मानसिक दोष भी हो सकते हैं।

7.एक ही गोत्र में कई अलग-अलग कुल होते हैं। इसलिए अलग-अलग समुदायों की अपनी परंपराएं हैं। कहीं 4 गोत्र टाले जाते हैं तो किसी वंश में 3 गोत्र टालने का भी नियम है। इससे विवाह में किसी तरह का दोष नहीं लगता है।

8.परंपराओं के अनुसार पहला गोत्र स्वयं का होता है। दूसरा मां का और तीसरा दादी का गोत्र होता है। कई लोग नानी के गोत्र का भी पालन करते हैं।

9.वैदिक संस्कृति के अनुसार, एक ही गोत्र में विवाह करना वर्जित है क्योंकि एक ही गोत्र के होने के कारण स्त्री-पुरुष भाई और बहन हो जाते हैं।

10.जानकारों के मुताबिक एक ही गोत्र में शादी करने से होने वाले बच्चों की विचारधारा में भी नयापन नहीं होता है। इसमें पूर्वजों की झलक देखने को मिलती है।

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क्षत्रिय और राजपूत में क्या अंतर है https://www.kshatriyakul.com/%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%af-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%9c%e0%a4%aa%e0%a5%82%e0%a4%a4-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a5%8d/ https://www.kshatriyakul.com/%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%af-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%9c%e0%a4%aa%e0%a5%82%e0%a4%a4-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a5%8d/#respond Sun, 20 Nov 2022 07:36:59 +0000 https://www.kshatriyakul.com/?p=171 प्राचीन भारत का सामाजिक तानाबाना विभिन्न जातियों से बना होता था और हर जाति की अपनी भूमिका होती थी जो समाज के सभी लोगों के प्रति जिम्मेदार होती थी और समाज की शांति, सुरक्षा, आर्थिक कार्य, पथ प्रदर्शन और विकास में अपनी भूमिका निभाती थी। ये सभी जातियां मुख्य रूप से चार वर्णो के अंतर्गत […]

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प्राचीन भारत का सामाजिक तानाबाना विभिन्न जातियों से बना होता था और हर जाति की अपनी भूमिका होती थी जो समाज के सभी लोगों के प्रति जिम्मेदार होती थी और समाज की शांति, सुरक्षा, आर्थिक कार्य, पथ प्रदर्शन और विकास में अपनी भूमिका निभाती थी। ये सभी जातियां मुख्य रूप से चार वर्णो के अंतर्गत आती थी जिनमे समाज की सुरक्षा की जिम्मेदारी क्षत्रियों, यज्ञ,देवताओं की पूजा और समाज के पथ प्रदर्शन की जिम्मेदारी ब्राह्मणों की, व्यापार की जिम्मेदारी वैश्य और सेवा कार्य की जिम्मेदारी शूद्र वर्ग की थी। समाज में इन चारों वर्णों की महत्वपूर्ण और अनिवार्य भूमिका थी। इन वर्णों में क्षत्रियों की भूमिका ब्राह्मणों के बाद काफी महत्वपूर्ण थी। ये जहाँ समाज और पशुओं की सुरक्षा करते थे वहीँ समाज को अच्छा शासन प्रदान करते थे ताकि समाज के लोग शांतिपूर्वक जीवन व्यतीत कर सकें। कालांतर में यह क्षत्रिय वर्ण क्षत्रिय जाति में परिणत हो गया और बाद में यह राजपूत के नाम से जाना जाने लगा। हालाँकि शुरू से ही इसमें अनेक जातियों का समावेश होता गया और कई जातियां इस वर्ग से बाहर भी होती गयी।

क्षत्रिय कौन हैं

प्राचीन भारतीय समाज चार वर्णों ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र में बंटा हुआ था। इन वर्णों के कार्य और जिम्मेदारियां निश्चित थीं। इनमे से ब्राह्मण यज्ञ और पुरोहित का कार्य करते थे वहीँ क्षत्रिय समाज की सुरक्षा के लिए जाने जाते थें। वैश्यों का व्यापार और शूद्रों के लिए सेवा कार्य निश्चित थे। इन वर्णों में क्षत्रिय अपनी वीरता और साहस के लिए जाने जाते थे और इस वर्ण में वैसे ही लोग होते थे जो सैन्य कुशलता में प्रवीण और शासक प्रवृति के होते थे। अतः युद्ध और सुरक्षा की जिम्मेदारी का निर्वाहन करने वाला वर्ण क्षत्रिय कहलाता था। इतिहास और साहित्य में कई क्षत्रिय राजाओं का वर्णन हुआ है जिनमे अयोध्या के राजा श्री राम, कृष्ण, पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप आदि प्रमुख हैं। क्षत्रियों के वंशज वर्तमान में राजपूत के रूप में जाने जाते हैं।

क्षत्रिय की उत्पत्ति

प्राचीन सिद्धांतों और मान्यताओं के अनुसार क्षत्रिय की उत्पत्ति ब्रह्मा की भुजाओं से हुई मानी जाती है। एक और कथा के अनुसार क्षत्रियों की उत्पत्ति अग्नि से हुई थी। कुछ लोग अग्निकुला के इस सिद्धांत विदेशियों को भारतीय समाज में शामिल होने के लिए किये गए शुद्धिकरण की प्रक्रिया के रूप में देखते हैं। अग्निकुला सिद्धांत का वर्णन चन्दवरदाई रचित पृथ्वीराज रासो में आता है जिसके अनुसार वशिष्ठ मुनि ने आबू पर्वत पर चार क्षत्रिय जातियों को उत्पन्न किया था जिसमे प्रतिहार, परमार, चौहान और चालुक्य या सोलंकी थे।

ऋग्वैदिक शासन प्रणाली में शासक के लिए राजन और राजन्य शब्दों का प्रयोग किया गया है। उस समय राजन वंशानुगत नहीं माना जाता था। वैदिक काल के अंतिम अवस्था में राजन्य की जगह क्षत्रिय शब्द ने ले ली जो किसी विशेष क्षेत्र पर शक्ति या प्रभाव या नियंत्रण को इंगित करता था। संभवतः विशेष क्षेत्र पर प्रभुत्व रखने वाले क्षत्रिय कहलाये। महाभारत के आदि पर्व के अंशअवतारन पर्व के अध्याय 64 के अनुसार क्षत्रिय वंश की उत्पत्ति ब्राह्मणो द्वारा हुई है।

प्राचीन साहित्यों से पता चलता है कि क्षत्रिय वर्ण आनुवंशिक नहीं था और यह किसी जाति विशेष से सम्बंधित नहीं था। जातकों, रामायण और महाभारत ग्रंथों में क्षत्रिय शब्द से सामंत वर्ग और युद्धरत अनेक जातियां जैसे अहीर, गड़डिया, गुर्जर, मद्र, शक आदि का भी वर्णन हुआ है। वास्तव में क्षत्रिय समस्त राजवर्ग और सैन्य वर्ग का प्रतिनिधित्व करता था। क्षत्रिय वर्ग का मुख्य कर्तव्य युद्ध काल में समाज की रक्षा के लिए युद्ध करना तथा शांति काल में सुशासन प्रदान करना होता था।

राजपूत कौन हैं

राजपूत अपने स्वाभिमान, वीरता, त्याग और बलिदान के लिए जाने जाते थे। अदम्य साहस और देशभक्ति उनमे कूट कूट कर भरी होती थी। राजपूत राजपुत्र का ही अपभ्रंश माना जाता है और इनमे राजाओं के पुत्र, सगे सम्बन्धी और अन्य राज्य परिवार के लोग होते थे। चूँकि राजपूत शासक वर्ग से सम्बन्ध रखते थे अतः इनमे मुख्य रूप से क्षत्रिय जाति के लोग होते थे। हालाँकि शासक वर्ग की कई जातियां शासन और शक्ति की बदौलत राजपूत जाति में शामिल होती गयी। हर्षवर्धन के उपरांत 12 वीं शताब्दी तक का समय राजपूत काल के रूप में जाना जाता है। इस समय तक उत्तर भारत में राजपूतों के 36 कुल प्रसिद्ध हो चुके थे। इनमे चौहान, प्रतिहार, परमार, चालुक्य, सोलंकी, राठौर, गहलौत, सिसोदिया, कछवाहा, तोमर आदि प्रमुख थे।

राजपूतों का इतिहास एवं उत्पत्ति

राजपूतों की उत्पत्ति के विषय में इतिहास विशेषज्ञों का मत एक नहीं रहा है। कई इतिहासकारों का मानना है कि प्राचीन क्षत्रिय वर्ण के वंशज राजपूत जाति के रूप में परिणत हो गयी। कुछ विद्वान खासकर औपनिवेशिक काल में यह मानते थे कि क्षत्रिय विदेशी आक्रमणकारियों जैसे सीथियन और हूणों के वंशज हैं जो भारतीय समाज में आकर रच बस गए और इसी समाज का हिस्सा बन गए। कर्नल जेम्स टाड और विलियम क्रूक क्षत्रियों के सीथियन मूल को मानते थे। वी ए स्मिथ क्षत्रियों का सम्बन्ध शक और कुषाण जैसी जातियों से भी जोड़ते हैं। ईश्वरी प्रसाद और डी आर भंडारकर ने भी इन सिद्धांतों का समर्थन किया है और राजपूतों को इनका वंशज मानते हैं। वहीँ कुछ अन्य विद्वान राजपूतों को वैसे ब्राह्मण मानते थे जो शासन करते थे। आधुनिक शोधों से पता चलता है कि राजपूत विभिन्न जातीय और भौगोलिक क्षेत्रों से आये और भारतभूमि में रच बस गए। राजपुत्र पहली बार 11 वीं शताब्दी के संस्कृत शिलालेखों में शाही पदनामों के लिए प्रयुक्त दिखाई देता है। यह राजा के पुत्रों, रिश्तेदारों आदि के लिए प्रयुक्त होता था। मध्ययुगीन साहित्य के अनुसार विभिन्न जातियों के लोग शासक वर्ग में होने की वजह से इस श्रेणी में आ गए। धीरे धीरे राजपूत एक सामाजिक वर्ग के रूप में सामने आया जो कालांतर में वंशानुगत हो गया।

वर्तमान में राजपूत इन्ही क्षत्रियों के वंशज माने जाते हैं किन्तु क्षत्रिय से राजपूत तक आते आते एक लम्बा समय लग गया और यह अपने वर्तमान स्वरुप को 16 वीं शताब्दी में प्राप्त कर सका। हालाँकि उत्तर भारत में यह छठी शताब्दी से विभिन्न वंशावलियों का वर्णन करने के लिए प्रयुक्त होता है। शुरू में प्रायः 11 वीं शताब्दी में शाही अधिकारीयों के लिए गैर वंशानुगत पदनाम के रूप में राजपुत्र शब्द का प्रयोग होने के उदाहरण मिलते हैं जो धीरे धीरे एक सामाजिक वर्ग के रूप में विकसित हुआ। इस वर्ग में विभिन्न प्रकार के जातीय और भौगोलिक पृष्ठभूमि के लोग शामिल थे। यह बाद में जाकर 16 वीं और 17 वीं शताब्दी तक लगभग वंशानुगत हो चुकी थी।

राजपूत शब्द रजपूत जिसका अर्थ धरतीपुत्र के रूप में भी कहीं कहीं प्रयुक्त हुआ है किन्तु यह वास्तविक रूप से मुग़ल काल में ही प्रयोग में आने लगा। यह राजपुत्र के अपभ्रंश के रूप में राजपूत के रूप में राजा और उसकी संतानों के लिए प्रयुक्त होने लगा। कौटिल्य, कालिदास, बाणभट्ट आदि की रचनाओं में भी क्षत्रियों के लिए राजपुत्र का प्रयोग हुआ है। अरबी लेखक अलबेरुनी ने भी अपनी किताबों में राजपूत या राजपुत्र का जिक्र न करके क्षत्रिय शब्द का प्रयोग किया है।

राजपूतों को उत्तर भारत में भिन्न भिन्न नामों से जाना जाता है जैसे उत्तर प्रदेश में ठाकुर, बिहार में बाबूसाहेब या बबुआन, गुजरात में बापू, पर्वतीय क्षेत्रों में रावत या राणा दक्षिण में क्षत्रिय , मराठा आदि।

क्षत्रिय और राजपूत में क्या अंतर है

क्षत्रिय भारतीय समाज की वर्ण व्यवस्था का एक अंग है जबकि राजपूत एक जाति है।क्षत्रिय वैदिक संस्कृति से निकला शब्द है वहीँ राजपूत शब्द छठी शताब्दी से लेकर बारहवीं शताब्दी में विकसित हुआ।सभी क्षत्रिय राजपूत नहीं हैं पर सभी राजपूत क्षत्रिय हैं।

उपसंहार

इस प्रकार हम देखते हैं क्षत्रिय प्राचीन भारतीय समाज की वर्ण व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे। इनका मुख्य कर्तव्य समाज और पशुओं की सुरक्षा करना होता था। संभवतः यह व्यवस्था जातिगत नहीं थी। वर्तमान राजपूतों का उदय इन्हीं क्षत्रिय वर्ण से हुआ माना जाता है जो बाद में वंशानुगत हो गयी और एक जाति के रूप में परिणत हो गयी।

Ref :

https://hi.krishnakosh.org/http://history-rajput.blogspot.com/2017/02/blog-post.html

https://hi.wikipedia.org/wiki/https://www.mahashakti.org.in/2015/11/Kashatriyon-Ki-Utpatti-Evam-Etihasik-Mahatva.html

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राजपूत का मतलब https://www.kshatriyakul.com/%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%9c%e0%a4%aa%e0%a5%82%e0%a4%a4-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%ae%e0%a4%a4%e0%a4%b2%e0%a4%ac/ https://www.kshatriyakul.com/%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%9c%e0%a4%aa%e0%a5%82%e0%a4%a4-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%ae%e0%a4%a4%e0%a4%b2%e0%a4%ac/#respond Thu, 17 Nov 2022 18:36:07 +0000 https://www.kshatriyakul.com/?p=126 राजपूतों के लिये यह कहा जाता है कि वह केवल राजकुल में ही पैदा हुआ होगा,इसलिये ही राजपूत नाम चला,लेकिन राजा के कुल मे तो कितने ही लोग और जातियां पैदा हुई है सभी को राजपूत कहा जाता,यह राजपूत शब्द राजकुल मे पैदा होने से नही बल्कि राजा जैसा बाना रखने और राजा जैसा धर्म […]

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राजपूतों के लिये यह कहा जाता है कि वह केवल राजकुल में ही पैदा हुआ होगा,इसलिये ही राजपूत नाम चला,लेकिन राजा के कुल मे तो कितने ही लोग और जातियां पैदा हुई है सभी को राजपूत कहा जाता,यह राजपूत शब्द राजकुल मे पैदा होने से नही बल्कि राजा जैसा बाना रखने और राजा जैसा धर्म “सर्व जन हिताय,सर्व जन सुखाय” का रखने से राजपूत शब्द की उत्पत्ति हुयी। राजपूत को चार शब्दों में प्रयोग किया जाता है,पहला “राजपूत”,दूसरा “क्षत्रिय”, तीसरा “ठाकुर” और चौथा “मराठा” ( महाराष्ट्र में स्थापित हुए क्षत्रिय। ),आज इन शब्दों की भ्रान्तियों के कारण यह राजपूत समाज कभी कभी बहुत ही संकट में पड जाता है।

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राजपूतों की वंशावली https://www.kshatriyakul.com/%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%9c%e0%a4%aa%e0%a5%82%e0%a4%a4%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%b5%e0%a4%82%e0%a4%b6%e0%a4%be%e0%a4%b5%e0%a4%b2%e0%a5%80/ https://www.kshatriyakul.com/%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%9c%e0%a4%aa%e0%a5%82%e0%a4%a4%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%b5%e0%a4%82%e0%a4%b6%e0%a4%be%e0%a4%b5%e0%a4%b2%e0%a5%80/#respond Thu, 17 Nov 2022 17:26:56 +0000 https://www.kshatriyakul.com/?p=121 चार हुतासन सों भये कुल छत्तिस वंश प्रमाण भौमवंश से धाकरे टांक नाग उनमान चौहानी चौबीस बंटि कुल बासठ वंश प्रमाण.” अर्थ:-दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय दस चन्द्र वंशीय,बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि वंशीय कुल छत्तिस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है,बाद में भौमवंश नागवंश क्षत्रियों को सामने करने के बाद जब चौहान वंश चौबीस अलग […]

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चार हुतासन सों भये कुल छत्तिस वंश प्रमाण

भौमवंश से धाकरे टांक नाग उनमान

चौहानी चौबीस बंटि कुल बासठ वंश प्रमाण.”

अर्थ:-दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय दस चन्द्र वंशीय,बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि वंशीय कुल छत्तिस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है,बाद में भौमवंश नागवंश क्षत्रियों को सामने करने के बाद जब चौहान वंश चौबीस अलग अलग वंशों में जाने लगा तब क्षत्रियों के बासठ अंशों का पमाण मिलता है।

सूर्य वंश की दस शाखायें:-

१. गहलोत/सिसोदिया २. राठौड ३. बडगूजर/सिकरवार ४. कछवाह ५. दिक्खित ६. गौर ७. गहरवार ८. डोगरा ९.बल्ला १०.वैस

चन्द्र वंश की दस शाखायें:-

१.जादौन२.भाटी३.तोमर४.चन्देल५.छोंकर६.झाला७.सिलार८.वनाफ़र ९.कटोच१०. सोमवंशी

अग्निवंश की चार शाखायें:-

१.चौहान२.सोलंकी३.परिहार ४.पमार.

ऋषिवंश की बारह शाखायें:-

१.सेंगर२.कनपुरिया३.गर्गवंशी(हस्तिनापुर के राजा दुष्यन्त के वंशज)४.दायमा५.गौतम६.अनवार (राजा जनक के वंशज)७.दोनवार८.दहिया(दधीचि ऋषि के वंशज)९.चौपटखम्ब १०.काकन११.शौनक १२.बिसैन

चौहान वंश की चौबीस शाखायें:-

१.हाडा २.खींची ३.सोनीगारा ४.पाविया ५.पुरबिया ६.संचौरा ७.मेलवाल८.शम्भरी ९.निर्वाण १०.मलानी ११.धुरा १२.मडरेवा १३.सनीखेची १४.वारेछा १५.पसेरिया १६.बालेछा १७.रूसिया १८.चांदा१९.निकूम २०.भावर २१.छछेरिया २२.उजवानिया २३.देवडा २४.बनकर.

क्षत्रिय जातियो की सूची

क्रमांकनामगोत्रवंशस्थान और जिला
१.सूर्यवंशीभारद्वाज, कश्यपसूर्यमहाराजा राजपूताना झारखंड
२.गहलोतकश्यप, बैजवापेडसूर्यमेवाड़ और पूर्वी जिले
३.सिसोदियाकश्यप,बैजवापेडगहलोतमहाराणा उदयपुर स्टेट
४.कछवाहागौतम,वशिष्ठ,मानवसूर्यमहाराजा जयपुर
५.राठौडगौतम,कश्यप,भारद्वाज,शान्डिल्य,अत्रिगहरवारमहाराजा जोधपुर ,बीकानेर,किशनगढ़ और पूर्व और मालवा
६.सोमवंशीअत्रयचन्द्रप्रतापगढ और जिला हरदोई
७.खेरवावंशीकश्यपचन्द्रराजकरौली राजपूताने में
८.भाटीअत्रयजादौनमहारजा जैसलमेर राजपूताना
९.जाडेचाअत्रययमवंशीमहाराजा कच्छ भुज
१०.जावतअत्रयजादौनशाखा अवा. कोटला ऊमरगढ आगरा
११.तोमरअत्रय, व्याघ्र, गार्गेयचन्द्रपाटन के राव तंवरघार जिला ग्वालियर
१२.कटियारव्याघ्रतोंवरधरमपुर का राज और हरदोई
१३.पालीवारव्याघ्रचन्द्रगोरखपुर
१४.सत्पोखरियाभारद्वाजराठौड(चाँपावत)मऊ जिला घोसी, इंदारा
१५.परिहार, वरगाहीकौशल्य, कश्यपअग्निबांदा जिला, रीवा राज्य में बघेलखंड
१६.तखीकौशल्यपरिहारपंजाब कांगडा जालंधर जम्मू में
१७.पंवारवशिष्ठअग्निमालवा मेवाड धौलपुर पूर्व मे बलिया
१८.सोलंकीभारद्वाजअग्निराजपूताना मालवा सोरों जिला एटा
१९.चौहानवत्सअग्निराजपूताना पूर्व और सर्वत्र
२०.हाडावत्सचौहानकोटा बूंदी और हाडौती देश
२१.खींचीवत्सचौहानखींचीवाडा मालवा ग्वालियर
२२.भदौरियावत्सअग्निनौगंवां पारना आगरा इटावा गालियर
२३.देवडावत्सचौहानराजपूताना सिरोही राज
२४.शम्भरीवत्सचौहाननीमराणा रानी का रायपुर पंजाब
२५.बच्छगोत्रीवत्सचौहानप्रतापगढ सुल्तानपुर
२६.राजकुमारवत्सचौहानदियरा कुडवार फ़तेहपुर जिला
२७.पवैयावत्सचौहानग्वालियर
२८.गौर,गौडभारद्वाजसूर्यशिवगढ रायबरेली कानपुर लखनऊ
२९.वैसभारद्वाजसूर्यआजमगढ उन्नाव रायबरेली मैनपुरी पूर्व में
३०.गहरवारकश्यप, भारद्वाजसूर्यमाडा, हरदोई, वनारस, उन्नाव, बांदा पूर्व
३१.सेंगरगौतमब्रह्मक्षत्रियजगम्बनपुर भरेह इटावा जालौन
३२.कनपुरियाभारद्वाजब्रह्मक्षत्रियपूर्व में राजाअवध के जिलों में हैं
३३.बिसेनअत्रय,वत्स,भारद्वाज,पाराशर,शान्डिल्यब्रह्मक्षत्रियगोरखपुर गोंडा प्रतापगढ महराजगंज (निचलौल के उत्तर क्षेत्र के समीप) हैं
३४.निकुम्भवशिष्ठ,भारद्वाजसूर्यमऊ गोरखपुर आजमगढ हरदोई जौनपुर
३५.श्रीनेतभारद्वाजनिकुम्भगाजीपुर बस्ती गोरखपुर
३६.कटहरियावशिष्ठ्याभारद्वाज,सूर्यबरेली बंदायूं मुरादाबाद शहाजहांपुर
३७.वाच्छिलअत्रयवच्छिलचन्द्रमथुरा बुलन्दशहर शाहजहांपुर
३८.बढगूजरवशिष्ठसूर्यअनूपशहर एटा अलीगढ मैनपुरी मुरादाबाद हिसार गुडगांव जयपुर
३९.झालामरीच, कश्यप, मार्कण्डेचन्द्रधागधरा मेवाड झालावाड कोटा
४०.गौतमगौतमब्रह्मक्षत्रियराजा अर्गल फ़तेहपुर
४१.रैकवारभारद्वाजसूर्यबहरायच सीतापुर बाराबंकी
४२.करचुल हैहयकृष्णात्रेयचन्द्रबलिया फ़ैजाबाद अवध
४३.चन्देलचान्द्रायनचन्द्रवंशीगिद्धौर ,कानपुर, फ़र्रुखाबाद, बुन्देलखंड, पंजाब, गुजरात
४४.जनवारकौशल्यचन्द्रवंशीबलरामपुर अवध के जिलों में
४५.बहेलियाभारद्वाज,वैस (उप जाति सिसोदिया )की गोद सिसोदियारायबरेली बाराबंकी
४६.दीत्ततकश्यपसूर्यवंश की शाखाउन्नाव, बस्ती, प्रतापगढ, जौनपुर, रायबरेली ,बांदा
४७.सिलारशौनिकचन्द्रसूरत राजपूतानी
४८.सिकरवारभारद्वाज, सांक्रित्यनबढगूजरग्वालियर, आगरा, गाजीपुर और उत्तरप्रदेश में
४९.सुरवारगर्गसूर्यकठियावाड में
५०.सुर्वैयावशिष्ठयदुवंशकाठियावाड
५१.मोरीब्रह्मगौतमसूर्यमथुरा ,आगरा ,धौलपुर
५२.टांक (तत्तक)शौनिकनागवंशमैनपुरी और पंजाब
५३.गुप्तगार्ग्यचन्द्रअब इस वंश का पता नही है
५४.कौशिककौशिकचन्द्रबलिया, आजमगढ, गोरखपुर
५५.भृगुवंशीभार्गवब्रह्मक्षत्रियवनारस, बलिया, आजमगढ, गोरखपुर
५६.गर्गवंशीगर्गब्रह्मक्षत्रियआजमगढ, नरसिंहपुर सुल्तानपुर,अवध,बस्ती,फैजाबाद
५७.पडियारिया,देवल,सांकृतसामब्रह्मक्षत्रियराजपूताना
५८.ननवगकौशिकचन्द्रजौनपुर जिला
५९.वनाफ़रपाराशर,कश्यपचन्द्रबुन्देलखन्ड बांदा वनारस
६०.जैसवारकश्यपयदुवंशीमिर्जापुर एटा मैनपुरी
६१.चौलवंशभारद्वाजसूर्यदक्षिण मद्रास तमिलनाडु कर्नाटक में
६२.निमवंशीकश्यपसूर्यसंयुक्त प्रांत
६३.वैनवंशीवैन्यसोमवंशीमिर्जापुर
६४.दाहिमागार्गेयब्रह्मक्षत्रियकाठियावाड राजपूताना
६५.पुण्डीरकपिल, पुलस्त्यब्रह्मक्षत्रियपंजाब, गुजरात, रींवा, यू.पी.
६६.तुलवाआत्रेयचन्द्रराजाविजयनगर
६७.कटोचकश्यपचन्द्रराजानादौन कोटकांगडा
६८.चावडा,पंवार,चोहान,वर्तमान कुमावतवशिष्ठपंवार की शाखामलवा रतलाम उज्जैन गुजरात मेवाड
६९.अहवनवशिष्ठचावडा,कुमावतखेरी हरदोई सीतापुर बारांबंकी
७०.डौडियावशिष्ठपंवार शाखाबुलंदशहर मुरादाबाद बांदा मेवाड गल्वा पंजाब
७१.गोहिलबैजबापेणगहलोत शाखाकाठियावाड
७२.बुन्देलाकश्यपगहरवारशाखाबुन्देलखंड के रजवाडे
७३.काठीकश्यपगहरवारशाखाकाठियावाड झांसी बांदा
७४.जोहियापाराशरचन्द्रपंजाब देश मे
७५.गढावंशीकांवायनचन्द्रगढावाडी के लिंगपट्टम में
७६.मौखरीअत्रयचन्द्रप्राचीन राजवंश था
७७.लिच्छिवीकश्यपसूर्यप्राचीन राजवंश था
७८.बाकाटकविष्णुवर्धनसूर्यअब पता नहीं चलता है
७९.पालकश्यपसूर्ययह वंश सम्पूर्ण भारत में बिखर गया है
८०.सैनअत्रयब्रह्मक्षत्रिययह वंश भी भारत में बिखर गया है
८१.कदम्बमान्डग्यब्रह्मक्षत्रियदक्षिण महाराष्ट्र मे हैं
८२.पोलचभारद्वाजब्रह्मक्षत्रियदक्षिण में मराठा के पास में है
८३.बाणवंशकश्यपअसुरवंशश्री लंका और दक्षिण भारत में,कैन्या जावा में
८४.काकुतीयभारद्वाजचन्द्र,प्राचीन सूर्य थाअब पता नही मिलता है
८५.सुणग वंशभारद्वाजचन्द्र,पाचीन सूर्य था,अब पता नही मिलता है
८६.दहियागौतमब्रह्मक्षत्रियमारवाड में जोधपुर
८७.जेठवाकश्यपहनुमानवंशीराजधूमली काठियावाड
८८.मोहिलवत्सचौहान शाखामहाराष्ट्र मे है
८९.बल्लाभारद्वाज,कश्यपसूर्यकाठियावाड मे मिलते हैं
९०.डाबीवशिष्ठयदुवंशराजस्थान
९१.खरवडवशिष्ठयदुवंशमेवाड उदयपुर
९२.सुकेतभारद्वाजगौड की शाखापंजाब में पहाडी राजा
९३.पांड्यअत्रयचन्दअब इस वंश का पता नहीं
९४.पठानियापाराशरवनाफ़रशाखापठानकोट राजा पंजाब
९५.बमटेलाशांडल्यविसेन शाखाहरदोई फ़र्रुखाबाद
९६.बारहगैयावत्सचौहानगाजीपुर
९७.भैंसोलियावत्सचौहानभैंसोल गाग सुल्तानपुर
९८.चन्दोसियाभारद्वाजवैससुल्तानपुर
९९.चौपटखम्बकश्यपब्रह्मक्षत्रियजौनपुर
१००.धाकरेभारद्वाज(भृगु)ब्रह्मक्षत्रियआगरा मथुरा मैनपुरी इटावा हरदोई बुलन्दशहर
१०१.धन्वस्तयमदाग्निब्रह्मक्षत्रियजौनपुर आजमगढ वनारस
१०२.धेकाहाकश्यपपंवार की शाखाभोजपुर शाहाबाद
१०३.दोबर(दोनवार)वत्स या कश्यपब्रह्मक्षत्रियगाजीपुर बलिया आजमगढ गोरखपुर
१०४.हरद्वारभार्गवचन्द्र शाखाआजमगढ
१०५.जायसकश्यपराठौड की शाखारायबरेली मथुरा
१०६.जरोलियाव्याघ्रपदचन्द्रबुलन्दशहर
१०७.जसावतमानव्यकछवाह शाखामथुरा आगरा
१०८.जोतियाना(भुटियाना)मानव्यकश्यप,कछवाह शाखामुजफ़्फ़रनगर मेरठ
१०९.घोडेवाहामानव्यकछवाह शाखालुधियाना होशियारपुर जालन्धर
११०.कछनियाशान्डिल्यब्रह्मक्षत्रियअवध के जिलों में
१११.काकनभृगुब्रह्मक्षत्रियगाजीपुर आजमगढ
११२.कासिबकश्यपकछवाह शाखाशाहजहांपुर
११३.किनवारकश्यपसेंगर की शाखापूर्व बंगाल और बिहार में
११४.बरहियागौतमसेंगर की शाखापूर्व बंगाल और बिहार
११५.लौतमियाभारद्वाजबढगूजर शाखाबलिया गाजी पुर शाहाबाद
११६.मौनसमौनकछवाह शाखामिर्जापुर प्रयाग जौनपुर
११७.नगबकमानव्यकछवाह शाखाजौनपुर आजमगढ मिर्जापुर
११८.पलवारव्याघ्रसोमवंशी शाखाआजमगढ फ़ैजाबाद गोरखपुर
११९.रायजादेपाराशरचन्द्र की शाखापूर्व अवध में
१२०.सिंहेलकश्यपसूर्यआजमगढ परगना मोहम्दाबाद
१२१.तरकडकश्यपदिक्खित शाखाआगरा मथुरा
१२२.तिसहियाकौशल्यपरिहारइलाहाबाद परगना हंडिया
१२३.तिरोताकश्यपतंवर की शाखाआरा शाहाबाद भोजपुर
१२४.उदमतियावत्सब्रह्मक्षत्रियआजमगढ गोरखपुर
१२५.भालेवशिष्ठपंवारअलीगढ
१२६.भालेसुल्तानभारद्वाजवैस की शाखारायबरेली लखनऊ उन्नाव
१२७.जैवारव्याघ्रतंवर की शाखादतिया झांसी बुन्देलखंड
१२८.सरगैयांव्याघ्रसोमवंशहमीरपुर बुन्देलखण्ड
१२९.किसनातिलअत्रयतोमरशाखादतिया बुन्देलखंड
१३०.टडैयाभारद्वाजसोलंकीशाखाझांसी ललितपुर बुन्देलखंड
१३१.खागरअत्रययदुवंश शाखाजालौन हमीरपुर झांसी
१३२.पिपरियाभारद्वाजगौडों की शाखाबुन्देलखंड
१३३.सिरसवारअत्रयचन्द्र शाखाबुन्देलखंड
१३४.खींचरवत्सचौहान शाखाफ़तेहपुर में असौंथड राज्य
१३५.खातीकश्यपदिक्खित शाखाबुन्देलखंड,राजस्थान में कम संख्या होने के कारण इन्हे बढई गिना जाने लगा
१३६.आहडियाबैजवापेणगहलोतआजमगढ
१३७.उदावतगौतमराठौडपाली
१३८.उजैनेश्रवणपंवारआरा डुमरिया
१३९.अमेठियाभारद्वाजगौडअमेठी लखनऊ सीतापुर
१४०.दुर्गवंशीकश्यपदिक्खितराजा जौनपुर राजाबाजार
१४१.बिलखरियाकश्यपदिक्खितप्रतापगढ उमरी राजा
१४२.डोगराकश्यपसूर्यकश्मीर राज्य और बलिया
१४३.निर्वाणवत्सचौहानराजपूताना (राजस्थान)
१४४.जाटूव्याघ्रतोमरराजस्थान,हिसार पंजाब
१४५.नरौनीमानव्यकछवाहाबलिया आरा
१४६.भनवगभारद्वाजकनपुरियाजौनपुर
१४७.गिदवरियावशिष्ठपंवारबिहार मुंगेर भागलपुर
१४८.रक्षेलकश्यपसूर्यरीवा राज्य में बघेलखंड
१४९.कटारियाभारद्वाजसोलंकीझांसी मालवा बुन्देलखंड
१५०.रजवारवत्सचौहानपूर्व मे बुन्देलखंड
१५१.द्वारव्याघ्रतोमरजालौन झांसी हमीरपुर
१५२.इन्दौरियाव्याघ्रतोमरआगरा मथुरा बुलन्दशहर
१५३.छोकरअत्रययदुवंशअलीगढ मथुरा बुलन्दशहर
१५४.जांगडावत्सचौहानबुलन्दशहर पूर्व में झांसी
१५५.शौनकशौनभ्रृगुवंशीइलाहाबाद
१५६.बघेलकश्यप या भारद्वाजसोलंकीरीवा राज्य में बघेलखंड
१५७.दिक्खितकश्यपसूर्यबुन्देलखंड
१५८.बंधलगोतीभारद्वाजब्रह्मक्षत्रियअमेठी,सुल्तानपुर
१५९.कलहंसअंगिरसपरिहारप्रतापगढ,बहरायच,गोरखपुर,बस्ती
१६०.बेरुआरभारद्वाजतोमरबलिया,आजमगढ,मऊ

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